सत्य के समान कोई धर्म नहीं
सत्य समान तप नहीं, झूठ समान नहीं पाप Ÿ। जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप ।।
‘सत्य के समान कोई तप नहीं है एवं झूठ के समान कोई पाप नहीं है । जिसके हृदय में सच्चाई है, उसके हृदय में स्वयं परमात्मा निवास करते हैं ।‘
मोहनदास गाँधी ने विद्यार्थी काल में ‘सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र‘ नामक नाटक देखा । इसका इतना प्रभाव पडा कि उन्होंने दृढ निर्णय कर लिया : ‘कुछ भी हो जाए, मैं सदैव सत्य ही बोलूँगा ।‘
उन्होंने सत्य को ही अपना जीवनमंत्र बना लिया ।
एक बार पाठशाला में खेलकूद का कार्यक्रम चल रहा था । उनकी खेलकूद में रुचि नहीं थी, अतः उपस्थिति देने के लिए वे जरा देर से आये । शिक्षक ने पूछा : ‘‘इतनी देर से क्यों आये ?‘‘
मोहनलाल : ‘‘खेलकूद में मेरी रुचि नहीं है और घर पर थोडा काम भी था, इसलिए देर से आया ।‘‘
शिक्षक : ‘‘तुम्हें एक आने का अर्थदण्ड देना पडेगा ।‘‘ दण्ड सुनकर मोहनलाल रोने लगे । शिक्षक ने उन्हें रोते देखकर कहा : ‘‘तुम्हारे पिता करमचंद गाँधी तो धनवान आदमी हैं । एक आना दण्ड के लिए क्यों रोते हो ?‘‘
मोहनलाल : ‘‘एक आने के लिए नहीं रोता किन्तु मैंने आपको सच-सच बता दिया, फिर भी आप मुझ पर विश्वास नहीं करते । आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं होता इसीलिए मुझे रोना आ गया ।‘‘ मोहनलाल की सच्चाई देखकर शिक्षक ने उन्हें माफ कर दिया । ये ही विद्यार्थी मोहनलाल आगे चलकर महात्मा गाँधी के रूप में करोडों-करोडों लोगों के दिलों-दिमाग पर छा गये |
सत्य के आचरण से अंतर्यामी ईश्वर प्रसन्न होते हैं, सत्यनिष्ठा दृढ होती है एवं हृदय में ईश्वरीय शक्ति प्रगट हो जाती है । सत्य का आचरण करनेवाला निर्भय रहता है । उसका आत्मबल बढता है । असत्य से सत्य अनंतगुना बलवान है । जो बात-बात में झूठ बोल देते हैं, उनका विश्वास कोई नहीं करता है । फिर एक झूठ को छिपाने के लिए सौ बार झूठ भी बोलना पडता है । अतः सत्य का आचरण करना चाहिए ।